शनिदेव से क्यों डरते हैं लोग? क्या शनि शत्रु हैं या मित्र हैं या फिर कुछ और?

शनि देव से क्यों डरते हैं लोग ?

*पं0 दिनेश चन्द्र पाठक की रिपोर्ट*

शनिदेव से क्यों डरते हैं लोग? क्या शनि शत्रु हैं या मित्र हैं या फिर कुछ और?
जब भी हमारे सामने शनिदेव का नाम आता है तो अक्सर लोग घबरा जाते हैं और भयभीत हो जाते हैं क्योंकि उनको लगता है कि शनिदेव बहुत ही गुस्से वाले देवता हैं और वे सदैव दंड देते हैं और लोगों को परेशान करते हैं। तो क्या कभी आपने सोचा है कि वास्तव में शनि देव हमारे शत्रु हैं या फिर बात कुछ और है? आज हम आपको बताएँगे कि शनिदेव कौन हैं और क्या हैं उनकी ख़ास बातें। आज दोपहर 12:05 बजे शनि देव मकर राशि में गोचर करेंगे। सभी के मन में इस गोचर को लेकर कोई न कोई हलचल मच रही होगी। तो क्या शनिदेव कुछ बुरा करते हैं या हम कुछ गलत समझ रहे हैं?  यही सब जानने के लिए और शनि देव के बारे में पूरी जानकारी पाने के लिए इस लेख को अवश्य पढ़ें!

आखिर कौन हैं शनि देव 

सबसे पहले यह जान लेते हैं कि शनिदेव आखिर कौन हैं। नव ग्रहों में सूर्य देव को नव ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा है। सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा से यम और यमि की उत्पत्ति हुई, लेकिन देवी संज्ञा सूर्य देव का तेज सहन नहीं कर सकती थीं,  इसलिए वे तपस्या करने चली गईं और सूर्य देव को इस बात का एहसास ना हो, इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्य देव की देखभाल के लिए नियुक्त कर दिया, लेकिन सूर्य देव ने छाया को ही अपनी पत्नी माना और उन दोनों से शनि देव का जन्म हुआ। इस प्रकार शनि देव सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं। यही वजह है कि उन्हें छाया पुत्र भी कहा जाता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि और सूर्य में शत्रुता है। सूर्य प्रकाश के देवता हैं और दिन में शक्तिशाली माने जाते हैं तो शनि देव अंधकार के देखता हैं और रात्रि में शक्तिशाली माने जाते हैं। एक कथा के अनुसार जब छाया पुत्र शनि देव का जन्म हुआ तो उनका वर्ण श्याम था, जिसकी वजह से सूर्य देव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया और उनकी माता छाया को अपशब्द कहे। इससे क्रुद्ध होकर बाल शनि में अपने पिता सूर्य को ग्रहण लगा दिया। इसी वजह से अक्सर सूर्य और शनि में तनाव रहता है। हालांकि दोनों पिता-पुत्र हैं और सूर्य जगत की आत्मा हैं तो शनि जगत के न्यायाधीश। ये दोनों ही मानव जीवन में महत्वपूर्ण दायित्व निभाते हैं।

शनिदेव की विशेष बातें

धार्मिक रूप से देखें तो शनि देव सूर्य और छाया के पुत्र हैं तथा भगवान शंकर के प्रिय शिष्य भी हैं और भगवान शिव ने ही शनि देव को दंड नायक बनाया।  यदि वैदिक ज्योतिष की बात की जाए तो उसके अनुसार शनि देव भचक्र की दसवीं और ग्यारहवीं राशियोंं अर्थात मकर और कुंभ के स्वामी हैं। यह तुला राशि में उच्च अवस्था में माने जाते हैं और मेष राशि में अपनी नीच अवस्था में इनकी स्थिति होती है। कुंभ इनकी मूल त्रिकोण राशि भी है। यह वायु तत्व की प्रधानता वाले ग्रह हैं और शीतल हवाओं के कारक भी हैं।

फैक्ट्री, कोयले की खान, ज़मीन के अंदर की वस्तुएँ, खंडहर, पुराने मकान, मलिन बस्ती तथा पहाड़, आदि इन सभी का संबंध शनि ग्रह से माना जाता है। यदि शनि ग्रह कुंडली में अशुभ स्थिति में हों तो व्यक्ति को कैंसर, पैरालाइसिस, जुकाम, अस्थमा, फ्रैक्चर, सन्धिवात, जैसी बीमारियाँ दे सकते हैं और दुर्घटना तथा कारावास जैसी स्थितियों का निर्माण भी कर सकते हैं।

यदि शनि आपकी कुंडली में उच्च और बढ़िया अवस्था में होते हैं और आपके लिए शुभ फल देने वाले होते हैं तो ये आपको कर्मठ बनाते हैं। आप न्याय प्रिय होने के साथ साथ कर्मशील भी होते हैं, जिससे आपको कर्म क्षेत्र में सफलता मिलती है। ऐसे लोगों की तरक्की थोड़ी देर से तो होती है, लेकिन पक्की तरह की होती है। जीवन में स्थायित्व रहता है। शनि आपको जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। वे आपको धैर्यवान बनाते हैं और आपकी आयु बढ़ाते हैं।

शनि से संबंधित कार्य क्षेत्रों में इंजीनियरिंग, लेबर, ऑटोमोबाइल, गैस, तेल, चमड़ा, और लोहे का काम तथा लोगों की सेवा करना मुख्य रूप से आता है।

शनिदेव का गोचर

शनिदेव का गोचर भी बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह सबसे अधिक समय एक राशि में बिताते हैं और लगभग ढाई वर्ष तक एक राशि में स्थित रहते हैं। इसलिए इनके गोचर की अवधि को ढैय्या भी कहा जाता है। शनि के गोचर से ही व्यक्ति को साढ़ेसाती का आदि, मध्य और अंत मिलता है और साढ़े सात साल के समय में शनि का विशेष रूप से प्रभाव दिखाई देता है, जिसे साढ़ेसाती कहा जाता है। वहीं चतुर्थ भाव अथवा अष्टम भाव में शनि होने से शनि की पनौती अथवा कंटक शनि का समय भी कहलाता है।

शनि प्रजातंत्र और लोकतंत्र का कारक है तथा जनता का प्रतिनिधित्व करता है। जितने भी बड़े शासक या राजा या प्रधानमंत्री होते हैं, उनके चतुर्थ अथवा दशम अथवा दोनों भावों पर विशेष रूप से शनि का प्रभाव देखा जाता है क्योंकि यही उन्हें जनता की नजर में बड़ा बनाते  हैं। इसके अतिरिक्त एक न्यायाधीश होने के कारण न्यायपालिका पर विशेष रूप से शनि का अधिकार होता है।

शनि से क्यों डरते हैं लोग

वर्तमान समय में भी जब सभी लोग अपने कर्म बंधन से जुड़े हुए हैं, फिर भी वे  जानबूझकर या अनजाने में अनेक ऐसे गलत कार्य कर गुजरते हैं, जो उनकी परेशानी का कारण बनते हैं और शनिदेव अपनी दशा, महादशा, साढ़ेसाती अथवा ढैया के समय में उन्हें उनके कर्मों का समुचित फल देते हैं, जिसकी वजह से वे भयभीत हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि यह सब शनिदेव कर रहे हैं। जबकि वास्तव में शनिदेव कुछ नहीं करते, वे तो एक निष्पक्ष न्यायाधीश हैं, जो आपके कर्मों के अनुसार आपको फल देते हैं और आपको सही कर्म करने की दिशा दिखाते हैं।

शनिदेव एक ऐसे शिक्षक हैं, जो आपकी कठिन परीक्षा लेकर आपको एक महान व्यक्तित्व बनाते हैं। वे आपको निखारते हैं और जीवन के संघर्षों में तपाकर आप को कुंदन बना देते हैं। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा और शनि दोनों के व्यवहार में विरोधाभास होने के कारण शनि का गोचर चंद्र राशि के सापेक्ष विशेष रूप से मानसिक तौर पर  ऐसे चक्र का निर्माण करता है, जिससे व्यक्ति अपने आप को घिरा हुआ महसूस करता है।

वर्तमान समय में भी कुछ लोग दिखावे के लिए या अपना धंधा चलाने के लिए शनि को गलत दिखा कर लोगों के मन में उनका डर बिठाते हैं ताकि वे उनके डर को भुना कर अच्छी कमाई कर सकें। इस वजह से भी लोग शनिदेव का नाम सुन कर भयभीत हो जाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। वास्तव में शनि शत्रु नहीं अपितु मित्र हैं। वे आपके सच्चे दोस्त हैं और आपका भला चाहते हैं। वे सदैव यह चाहते हैं कि आपके जीवन में आप एक महान व्यक्तित्व बनें, अपने जीवन मूल्यों को समझें और आपका चारित्रिक विकास हो और आप जीवन में उन्नति करें। इसलिए शनिदेव आप को सही रास्ता दिखाते हैं।

शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए कुछ ज्योतिषीय उपाय 

यदि आप चाहते हैं कि शनिदेव आप पर मेहरबान रहें और आपको शनिदेव के अच्छे परिणाम प्राप्त हों तो आप नीचे दिए गए कुछ विशेष उपाय अपना सकते हैं:

  • आप शनिदेव के वैदिक मंत्र “ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शं योरभि स्त्रवन्तु न:” अथवा शनि के तांत्रिक मंत्र “ॐ शं शनैश्चराय नमः” या फिर शनि के बीज मंत्र “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” का जाप कर सकते हैं।
  • शनि देव को प्रसन्न रखना है तो उसके लिए सबसे उत्तम उपाय है अपने कर्मों को सुधारना। यदि आप सही रास्ते पर चलेंगे, अच्छे कार्य करेंगे, ज़रूरतमंद लोगों की मदद करेंगे और दूसरों को बेवजह परेशान नहीं करेंगे तो इससे शनि देव बहुत जल्दी ही आपसे प्रसन्न हो जायेंगे।
  • कुछ अन्य उपायों में आप शनि देव की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए धतूरे की जड़ या बिच्छू जड़ी धारण कर सकते हैं।
  • आप नीलम रत्न भी पहन सकते हैं या उसके स्थान पर कटहैला रत्न भी धारण कर सकते हैं।
  • यदि आप चाहें तो सात मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर सकते हैं, जिसकी कृपा से आपको शनिदेव की दशा और महादशा में अनुकूल परिणाम प्राप्त होंगे।
  • आप चाहें तो शनि यंत्र की स्थापना करके उसकी विधिवत पूजा भी कर सकते हैं।
  • उपरोक्त में से प्रत्येक को शनिवार के दिन, शनि के नक्षत्रों पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद में अथवा शनि की होरा में धारण / स्थापित कर सकते हैं।
  • ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को भोजन करायें, इससे शनिदेव की कृपा शीघ्र ही प्राप्त हो जाएगी।
  • दिव्यांग जनों की सेवा करें से और उन्हें शनिवार के दिन आवश्यकता के अनुसार दवाई वितरित करें।  इस से भी शनि देव की कृपा शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है।
  • प्रतिदिन चींटियों को आटा डालें या फिर कसार बनाकर गोले में बाहर कर रख देने से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं।
  • अपने कार्य स्थल पर अपने साथ काम करने वाले और अपने अधीन काम कर रहे लोगों से अच्छा व्यवहार करें, उन्हें सम्मान दें और उनसे मित्रवत रहें तो आपको शनिदेव की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाएगी।

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