*नेपाल के काठमान्डू से छुडाये थे 40 बच्चे नौनिहालों को बचपन, बेटियों को दी जिंदगी, जानें-गोरखपुर शहर के इस सख्शियत राजेश मणि त्रिपाठी को *


*गोरखपुर के विकासनगर बरगदवा में रहते हैं। राजेश मणि त्रिपाठी अब तक करीब 700 बच्‍चों को होटल ईंट-भट्ठे किराना दुकानों से मुक्त कराकर उन्हें घर भेज चुके हैं।*…

*वह कैलाश सत्यार्थी, मलाला यूसुफजई या फिर नादिया मुराद तो नहीं हैं, लेकिन बचपन उनकी गोद में पलता है। उनकी छांव बेटियों को सुकून देती है। बात आसपास की हो या फिर हजारों मील दूर किसी दूसरे मुल्क की, जहां भी नौनिहालों का शोषण होता है, वह उनके लिए मसीहा बन जाते हैं।*

*अब तक सात सौ बच्‍चों को कराया मुक्‍त*
*हम बात कर रहे हैं मानव सेवा संस्थान के राजेश मणि त्रिपाठी की। वह कुशीनगर जिले के विकास खंड हाटा के मूल निवासी हैं। गोरखपुर के विकासनगर, बरगदवा में रहते हैं। राजेश अब तक करीब 700 बच्‍चों को होटल, ईंट-भट्ठे, किराना दुकानों से मुक्त कराकर उन्हें घर भेज चुके हैं।*

*यह कर चुके हैं काम*

*वह बताते हैं कि वर्ष भर पहले नेपाल के काठमांडू में छत्तीसगढ़ के 40 बच्‍चे फंस गए। एक एजेंट उन बच्‍चों को बहला-फुसलाकर नेपाल ले गया। वहां इनसे होटलों में काम लिया जाने लगा। उन्हें कहीं से इसकी जानकारी हुई तो बेचैन हो उठे। इन बच्‍चों को आजाद कराने के लिए उन्होंने उत्तराखंड के चंपावत जिले के एसएसपी से संपर्क किया। किसी तरह बच्‍चों को वहां से छुड़ाकर गोरखपुर ले आए। राजेश के जीवन में ऐसे कई किस्से हैं। दो वर्ष पहले नेपाल के बुटवल जिले के चार किशोरों को बरगलाकर मुंबई ले जाने की कोशिश की जा रही थी। सोनौली में राजेश इनसे मिल गए। किशोरों से बातचीत में कहानी सामने आ गई। एजेंट वहां से भाग निकला। उन किशारों को राजेश ने परिजनों से मिलाया, तो वह फफक पड़े। वर्ष 2002 से वह उन बेटियों के लिए अभियान चला रहे हैं, जो भटककर किसी एजेंट के चंगुल में फंस जाती हैं। 18 वर्ष में वह अपनी संस्था के माध्यम से तीन हजार से अधिक बेटियों को तस्करों के चंगुल से मुक्त करा चुके हैं।*

*मलेशिया में फंसे किशोर को छुड़ाया*

*मोहरीपुर का एक किशोर मलेशिया में फंस गया था। वह वहां अंडे गिनने का काम करता था। अंडा टूटने पर मालकिन उसे दंड स्वरूप घंटों धूप में खड़ा रखती। इसकी जानकारी किशोर की मां को हुई तो वह रोते-बिलखते राजेश के पास पहुंची। उसे मलेशिया से लाने के लिए राजेश ने तब विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज को पत्र लिखा। इस कार्य में उन्हें सफलता मिली। किशोर सकुशल घर लौटा।*

*यहां से आया बदलाव*

*राजेश बताते हैं कि वह मनोविज्ञान के छात्र रहे हैं। अंतिम वर्ष में प्रोजेक्ट वर्क में ‘बेटियां व बच्‍चे किसी गलत हाथों में पड़ जाएं तो उनका जीवन बर्बाद हो जाएगा विषय पर कार्य हुआ। उसके बाद से इसे अपने जीवन का ध्येय बना लिया। इसी उद्देश्य से मिशन में लगा हूं।******************************************

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