*अफसरों के गले का फांस बने पशुओं की मौत के आंकड़े, कार्रवाई से प्रशासनिक महकमे में खलबली*

*रिपोर्टर रतन गुप्ता सोनौली /नेपाल*

*महराजगंज जिला गोसदन की व्यवस्था के बेहतरी के नाम पर जिलाधिकारी ने प्रबंधक की छुट्टी कर पुरी व्यवस्था अफसरों के हवाले तो कर दी, लेकिन बदहाल व्यवस्था को पटरी पर नहीं ला सके। जून 2019 के पहले सप्ताह में 60 से अधिक गोवंशीय पशुओं के मौत की खबर प्रकाश में आने के बाद से ही गोसदन प्रबंधन ने आंकड़ों की बाजीगरी का खेल शुरु किया।*

*जांच पड़ताल में हकीकत सामने आई तो डीएम समेत अन्य अधिकारियों पर गाज गिरी। इसे लेकर प्रशासनिक महकमे में खलबली मच गई है। अधिकारियों पर हुई कार्रवाई को लोग अलग-अलग मामलों से जोड़ कर देख रहे हैं। कुछ लोग यह मान रहे हैं कि मधवलिया गोसदन में गायों की मौत के मामले के अलावा पत्रकार मनोज टिबडेवाल का घर गिराए जाने में प्रशासन की ओर से पारदार्शित नहीं बरती गई जिससे सीएम ने कड़ी कार्रवाई कर दी।*

*सूत्र बताते हैं कि मीडिया में आई खबरों को* झुठलाते हुए प्रशासन ने जून में 60 पशुओं की मौतों से तो पल्ला झाड़ लिया और शासन में अपनी बेहतर क्षवि बनाने के लिए मौतों की गिनती रोक दी। हद तो तब हो गई जब इसके बाद गोसदन की रजिस्टर को ही एक बड़े अधिकारी ने हटवा दिया। यही नहीं इस दौरान कुछ कर्मचारियों को भी हटाया गया और उनकी जगह पर पहले से तैनात एक चर्चित सुपरवाइजर को फिर से गोसदन में तैनात किया गया।

*इसके बाद 2 अक्तूबर 2019 को गोसदन के निकट एक गड्ढ़े और उसके आपपास दर्जनों गोवंशीय पशुओं का शव देख ग्रामीणों ने गोसदन परिसर में जमकर हंगामा भी किया। सूचना पर पहुंचे एसडीएम ने काफी देर तक ग्रामीणों से वार्ता की इसके बाद पशुओं के शव को दफनाया गया। सूत्र बताते हैं कि उन मौतों का भी गोसदन के रजिस्टर में कोई इंट्री नहीं हैं।*

*विधायक सिसवा प्रेमसागर पटेल ने बताया* कि गोसदन में हुई गड़बड़ी की जांच कराने के लिए सीएम से शिकायत हुई थी। जिसपर संज्ञान लेते हुए कार्रवाई हुई है। वहीं हिन्दू युवा वाहिनी जिलाध्यक्ष नरसिंह पांडेय ने बताया कि गोसदन में गायों का बेहतर ढंग से रखरखाव नहीं किया जा रहा है। इसकी शिकायत सीएम ने की गई थी।
मृत पशुओं की डाटा इंट्री में मनमानी की गई
सरकार की ओर से की गई इस कार्रवाई को लेकर चर्चा है कि जून के बाद से ही गोसदन में मृत पशुओं की डाटा इंट्री में मनमानी हुई है। यही नहीं जंगल की ओर चरने गए पशुओं के आने-जाने का भी कोई आंकड़ा गोसदन के पास उपलब्ध नहीं हैं।

*इस बीच विकास कार्यों का जायजा लेने आये कमिश्नर के सामने जब अफसरों ने गोसदन के पशुओं की संख्या के बाबत अलग-अलग जानकारी दी और मौके पर मौजूद पशुओं की संख्या कम दिखी तो कमिश्नर को संदेह हुआ और उन्होंने अपर आयुक्त प्रशासन को पशु गणना की जिम्मेदारी सौंपी। अपर आयुक्त की गणना में 1623 पशु लापता मिले। जिसकी रिपोर्ट कमिश्नर से होते हुए शासन तक पहुंची*।

*संसाधन भी बढ़े, लेकिन मौतों का क्रम नहीं टूटा*
सूबे में योगी सरकार बनने के साथ ही जिला गोसदन को लेकर जिला प्रशासन काफी गंभीर हुआ और अचानक से गोसदन की व्यवस्था को बेहतर बनाया जाने लगा। लेकिन प्रशासन की जितनी सक्रियता बढ़ी गोसदन की व्यवस्था उतनी ही बिगड़ती चली गई। चारे के लिए पांच सौ एकड़ भूमि है, लेकिन पशु भूख प्यास से दम तोड़ते गए। बीते वर्ष मंडल के विभिन्न जनपदों से भी यहां छुट्टा पशु लाए गए और देखते ही देखते दो सालों में गोसदन में गोवंशीय पशुओं की संख्या 350 से बढ़कर 2579 पहुंच गया।

इसके बाद कुछ संसाधन भी बढ़े, लेकिन मौतों का क्रम नहीं टूटा। इस दौरान गोसदन के बेहतर प्रबंधन के लिए प्रबंधक भी बदले गए। लेकिन हालात नहीं बदलें। जनवरी 2018 में एक पखवारे में 40 से अधिक गोवंशीयों की मौत की खबर से थोडे पर के लिए जिम्मेदार अफसरों की तंद्रा टूटी तो जरुर लेकिन नतीजा कुछ खास नहीं निकला।

इसके बाद जून 2019 में छह दिनों में 60 गोवंशीय पशुओं के मौत का मामला सामने आया। प्रशासन अपनी गलती छुपाने के लिए आंकडों में लीपापोती कर एक सुपरवाइजर की छुट्टी करते हुए गोसदन कर्मियों पर मीडिया से बात चीत करने पर ही रोक लगा दी*************************************

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