*जब 1998 में महराष्ट्र जैसा ही कुछ यूपी में भी हुआ था, फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बदल गई थी बाजी*

*दरअसल, 1998 में तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह (Kalyan Singh) सरकार को बर्खास्त करते हुए जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी थी*.

*जब 1998 में महराष्ट्र जैसा ही कुछ यूपी में भी हुआ था, फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बदल गई थी बाजी*

 

*रिपोर्टर रतन गुप्ता सोनौली /नेपाल*

 

*महाराष्ट्र में पल-पल बनते बिगड़ते सियासी समीकरण (Political Equation) उत्तर प्रदेश में हुए उस सियासी उथल-पुथल की याद दिलाते हैं जब रातों-रात कल्याण सिंह (Kalyan Singh) सत्ता से बेदखल हो गए थे और जगदंबिका पाल (Jagdambika Pal) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. दरअसल, 1998 में तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करते हुए जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी थी. जिसके बाद बीजेपी इस मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कम्पोजिट फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था. जिसमें कल्याण सिंह को 225 मत हासिल हुए थे और जगदम्बिका पाल को 196 वोट मिले थे.**

*कल्याण ने किया था बहुमत साबित*
*इस मामले में तत्कालीन स्पीकर केसरी नाथ त्रिपाठी द्वारा 12 सदस्यों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य करार देने पर उनकी भूमिका की भी काफी आलोचना हुई थी. हालांकि जब 12 सदस्यों ने कल्याण सिंह के समर्थन में वोट किया और उनके वोटों को अंत में घटाया गया तब भी सिंह के पास सदन में पूर्ण बहुमत था. इससे पहले कल्याण सिंह के बहुमत परीक्षण के ऑफर को राज्यपाल ने पहले खारिज कर दिया था. हालांकि वह दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री बने*.

*सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई*
*महाराष्ट्र में शनिवार को देवेंद्र फडनवीस के मुख्यमंत्री और एनसीपी के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अब ऐसा ही कुछ माहौल बना है* जैसा 1998 में उत्तर प्रदेश में था. राज्यपाल ने देवेंद्र फड्नवीस को 30 नवंबर तक बहुमत साबित करने को कहा है. जिसके बाद एनसीपी, कांग्रेस और शिव सेना रविवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं. इस मामले में अहम सुनवाई सोमवार को भी हो रही है. दिलचस्प ये है कि एनसीपी, कांग्रेस और शिव सेना की तरफ से दाखिल याचिका में 1998 सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया. तीनों ही दलों की तरफ से दाखिल याचिका में दावा किया गया है कि उनके पास बहुमत है और मौजूदा सरकार अल्पमत में है. लिहाजा ऐसी स्थित में जब एक से अधिक दावेदार हों तो बहुमत परिक्षण ही एकमात्र विकल्प हो सकता है.
*कल्याण सरकार में ही मंत्री थे जगदंबिका पाल*
बता दें जगदंबिका पाल उस वक्त कल्याण सिंह सरकार में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर थे. उन्होंने विरोधियों के संग मिलकर तख्ता पलट कर दिया था. उस समय केंद्र में कांग्रेस समर्थित यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी और इंद्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री थे. सत्ता से बेदखल होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी आमरण अनशन पर बैठ गए थे.******************************************

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