*रिपोर्टर रतन गुप्ता सोनौली /नेपाल 02 Oct 2019,*
*महात्मा गांधी 1942 में गौरीगंज पहुंचे तो उन्हें लोगों ने चंदे की थैली दी जिसमें 100 की जगह सिर्फ 99 रुपये थे। इसकी शिकायत जब महात्मा गांधी ने की तो खजांची रामचरित सेठ ने एक रुपये मिलाकर इस रकम को पूरा किया।*
*महात्मा गांधी के जीवन के कई-छोटे बड़े पल हमेशा से प्रेरणास्रोत रहे हैं, ऐसा ही एक किस्सा 1942 का काफी चर्चित है
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों में उत्साह भरने के लिए गांधी जी यात्रा कर रहे थे*
*गौरीगंज स्टेशन पर ‘भारत माता की जय’ सुनकर गांधी जी अपनेआप को रोक नहीं पाए और चेन पुलिंग कर उतर गए*
*महात्मा गांधी के जीवन के कई-छोटे बड़े पल हमेशा से लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। ऐसा ही एक किस्सा साल 1942 का काफी चर्चित है, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों में उत्साह भरने के लिए गांधी जी यात्रा कर रहे थे। गौरीगंज स्टेशन से ट्रेन गुजर रही थी। तभी ‘भारत माता की जय’ के नारे गूंजने लगे। नारों को सुनकर गांधी जी अपनेआप को रोक नहीं पाए और चेन पुलिंग कर उतर गए।*
नीचे उतरने पर नारेबाजी कर रहे लोगों ने उनका अभिवादन किया और 100 रुपये के चंदे का थैला भेंट स्वरूप उन्हें दे दिया। इस पर महात्मा गांधी उसे गिनने लगे। गिनती में उन्हें 100 से एक रुपया कम मिला तो उन्होंने इसकी शिकायत की। इस पर खजांची रामचरित सेठ ने एक रुपया मिलाकर 100 रुपये पूरे किया। इस बात को आज तक याद किया जाता है और आगे चलकर गौरीगंज में गांधी जी का पड़ाव भी आजादी के आंदोलन में एक अहम अध्याय बन गया।
*साथ चल दिए हजारों*
*महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर बापू की यादों साझा करते हुए साहित्यकार जगदीश पीयूष कहते है कि गांधी जी को अपने बीच में पाकर आजादी के दीवानों का ऐसा हाल था, मानो उन्हें उसी दिन ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिल गई हो। 1942 का यह आगमन गांधी जी का पहला और आखिरी पड़ाव साबित हुआ। उन्होंने जब लोगों से कहा- ‘हमें भारत माता की आजादी चाहिए। आप सब मेरा साथ देंगे या नहीं?’ इस पर हजारों की संख्या में लोग गांधी जी के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। इसमें बाबू गिरिराज सिंह, बैजनाथ सिंह समेत अन्य शामिल थे।*
*भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े आजादी के दीवाने*
*उनके एक आह्वाहन पर कई विद्यार्थियों ने पढ़ाई छोड़ दी और भारत छोड़ो आंदोलन में साथ हो लिए। बापू जी के साथ-साथ अमेठी के क्रांतिकारियों ने जेल यात्राएं कीं। ब्रिटिश हुकूमत की याचनाएं सहीं। गौरीगंज आगमन का यह असर हुआ कि पड़ोसी जिले रायबरेली, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी जिलों से लाखों की तादाद में आजादी के दीवाने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए गांधी जी के पीछे चल पड़े।***********************************