काफी अकेला हूँ, अकेला ही काफी हूँ.. सागर कश्यप

महराजगंज(ब्यूरो) मंजील पाने की चाह है तो, रास्ते भी आपको ही ढुढ़नी पड़ेगी,भीड़ मे आप नही ,आपके लिए भीड़ खडी़ हो ऐसी कडी़ ताकत आप मे भी है, “काफी अकेला हूँ, अकेला ही काफी हूँ”..ये शब्द अपने आप मे मजबुत होने का परिचय कराती है, अकेला बहुत हूं पर कुछ कर जाने की चाह हम मे भी है, ऐसी हुनर और जज्बात होनी चाहिए!ये मानता हूँ
‘उंगलियाँ उठेंगी’ वक़्त आएगा फिर उन्ही उंगलियों से आपके लिए तालियाँ भी बजेंगी!कामयाबी इतनी जोरो से होनी चाहिए,सफलता शोर मचा दे!सूरज आपको नहीं,अब आप सूरज को जगाईऐ!.आपकी कामयाबी ही आपकी पहचान है,वरना एक नाम के तो हजारों इंसान हैं!हार जीत तो एक सिक्के के दो पहलू है..हार जीत तो लगी रहती है!आपकी खाली हाथ देखकर लोग सोचेंगे कुछ मांगने चला है, पर ऐसा कुछ नहीं है, हो सकता है सब कुछ बांट के आया हो!मै सागर कश्यप जाते जाते एक लफ्ज और कहूंगा अपनी लेखनी के माध्यम से, नीम के पत्ते यूँही बदनाम थोडी ना होता, अफसोस आपकी जुबान को मीठा ही पसंद है!

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