महत्वाकांक्षी_साहित्यकार
यदुकुल_के_गौरव
योगेन्द्र_यादव_जिज्ञासु_जी_के_वाल_से पूंजी पति वर्ग ब्रितानी पूंजी से मुक्त होना चाहता था। अंग्रेज़ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कमजोर हो गए थे।पूंजी पतियों का बॉम्बे प्लान आ चुका था।हिन्दू – मुस्लिम के बीच खाई बढ़ चुकी थी।पूंजी के सवाल पर अंतरिम सरकार का प्रयोग असफल हो चुका था।प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस पर जिन्ना तमाशा कर चुके थे।इन्हीं द्वंद्व के बीच सत्ता का हस्तांतरण हुआ और १०० सालो से ज्यादे के बन्धन के बाद मानव मुक्ति की तरफ ४० करोंड भारतीय बैसाखी के सहारे खड़े हो गए थे।
अब जो लिख रहे हैं — हाट – बाजार हर जगह सुनाई देता है। सुन कर अच्छा भी लगता है –
आज के दौर की सबसे बड़ी कृतघ्नता स्मृति लोप या स्मृति शून्यता है।अतीत जीवी नही तो अतीत दर्शी होना ही चाहिए।
याद आने चाहिए अपने छप्पर पर लौकी कोहड़े जैसे उत्पादों की जिससे हमारी जरूरते पूरी हो जाती थीं। कितना अच्छा था जब माल नही थे जिसमें सब्जी भी बिकती है।
कितना अच्छा था जब हम अपनी जरूरत के हिसाब से स्कूल तक बना लेते थे बिना विवाद के फसलो के बीच रास्ते बना लेते। जिंदगी के छोटेे -छोटे हिस्से को पकड़ कर जिंदगी जी लेते ।
मानव और प्रकृति के बीच के लोम-हर्षक संघर्ष के बीच पानी की सप्लाई घर- घर होने लगी।
हमारी तरक्की का मुंह पूँजीवादी हो गया हम मिटे नही मिटा दिए गए।
अब सुबह नही होती अब कहा कोई मुर्गा बोलता। अब दोस्ती के मतलब हो गए। अब मन के मैल नही धुलते।
पूंजी का ब्याग्र – नख आम आदमी को खरोचने में लगा है।
याद करो जब नदिया धवल थी,धरती वृक्षों से ढकी थी,बैलो की सवारी थी।आदमी निश्चिंत था
हम गांव से निकल गए लेकिन गांव हमसे नहीं निकलता।परिवार देश की उन्नति की पर्ची है। अब परिवार ही नहीं बचा तो देश कमजोर होगा ही।
आजादी के दौर की सहज जीवन को सिर्फ याद करके या वही जीवन शैली अपनाकर मानव बंधनों से मुक्त हो सकता है? असल सवाल यहां आकर भयावह हो जाता है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना जो पूरे का सार तत्व है।समाजवादी और पंथ निरपेक्ष गणराज्य। इस बिंदु पर देश भटका – भटका लगता है। दूरियां बढ़ी हैं।
भगत सिंह ने हाई कोर्ट के सामने कहा
क्रांति संसार का नियम है।यह मानवीय प्रगति का रहस्य है। लेकिन उसमें रक्त रंजीत संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमे व्यक्तिगत प्रति हिंसा की कोई जगह है। वह बम और पिस्तौल का सम प्रदाय नहीं है। असल लड़ाई शोषण से मुक्ति की है।संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों में स्पष्ट है कि आजादी के दीवानों के स्वप्नों के साकार के क्रम में हम आगे बढ़ेंगे।हमारा दृष्टि कोण वैज्ञानिक होगा।जीवन और संविधान की गहरी समझ के बगैर,
मानव मुक्ति की यात्रा कभी अतीत दर्शन से खुश होती रहेगी और कभी वर्तमान की तथाकथित तरक्की से।असल मुद्दे पूंजी के साम्राज्य के सामने सिसिकिया भरते रहेंगे।
हमारी यात्रा बहुत लंबी है अभी तो डंके के चोट पर एक कीड़े से नहीं लड पा रहे है।
फिलहाल कल के आजादी के जश्न पर आप सभी को बधाई।
जिला प्रभारी महराजगंज-राम प्रवेश यादव