महराजगंज(ब्यूरो)वर्तमान समय गांव की ओर चलने का है।भारत की संस्कृति आज भी गांवों में जिंदा है। गांव में संस्कृति और संस्कृति से उत्सव आज भी जीवंत दृश्यमान होते हैं। जिन्हे हम पाखण्ड कहते हैं दरअसल वह खत्म होती हमारी संस्कृति है। हमारे देश में अनेक प्रकार की संस्कृति है। हमें इस संस्कृति को अपने रोम-रोम में समाना होगा। हमें फिर से अपनी संस्कृति की ओर लौटना चाहिए।
उत्तर प्रदेश प्राक्कलन समिति सभापति व पनियरा विधायक ज्ञानेंद्र सिंह के मीडिया प्रभारी/सलाहकार कौशल कुमार श्रीवास्तव के पूज्य दादा जी श्री राम गरीब लाल श्रीवस्तव जी इस पितृ पक्ष में गया जी जाकर अपने पितरों का पिण्ड दान करने निकले, उनके पीछे गांव के सैकड़ों लोग देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर उन्हे विदा किया। ढोल नगाड़े संग घर घर पहुंच कर भिक्षा लेना, अपने सभी छोटो को आर्शीवाद दिया। गाव के सभी स्त्री पुरुष पीछे पीछे गांव के बाहर तक छोड़ने आए। यह सब देख कर यही महसूस हुआ कि मानो जैसे आज भी हमारी संस्कृति जिंदा है।आप भी जाने.. कौशल श्रीवास्तव के कलम से-गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है।पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है। ज्यादातर लोगों की इच्छा होती है कि वो गया जाकर ही पिंडदान करें। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची हैं। इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। पिंडदान के लिए प्रतिवर्ष गया में देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं। इस अवसर पर समस्त रिश्तेदार गांव का इकठ्ठा होना सब एक नया अनुभव है।गया में श्राद्ध की पौराणिक मान्यता- पौराणिक मान्यताओं और किवंदंतियों के अनुसार, भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सब कुछ होने लगा। लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे। इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से मांगी। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं के यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। तबसे इस जगह को गया के नाम से जाना जाता है। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं।
उप संपादक-रिंकू गुप्ता की रिपोर्ट